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________________ ३८२ आसपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख साणेन हल्लिग्राम के लेख ४८६ ( ३६७) (शक सं० १०४१) श्रीमत्परम-गम्भीर स्याद्वादामोघ-लाञ्छनं । जीयात्रलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनं ॥ १ ॥ भद्रमस्तुजिनशासनाय सम्पद्यताम्प्रतिविधान-हेतवे । अन्यवादि-मद-हस्ति-मस्तक-स्फाटनाय घटने पटीयसे ।।२।। नम: सिद्ध भ्यः ।। नमो वीतरागाय ।। नमो अरुहन्ताय ॥ स्वस्ति श्रो-कोण्डकुन्दाख्ये विख्याते देशिके गणे। सिंहणन्दि-मुनीन्द्रस्य गङ्ग-राज्य-विनिर्मितं ॥ ३ ॥ आगे लेख की ५ से ४० पंक्ति तक गङ्गराज का वही वर्णन है जो लेख नं १० ( २४० ) के तीसरे पद्य से भागे १४ वे पद्य तक पाया जाता है।] ___ स्वस्ति समधिगत पञ्चमहाशब्द......नूमडि धन्यनल्ते ॥ १५ ॥ इससे आगे____ अन्तु बेडिकोण्डु श्री पार्श्वदेवर पुजेगं कुक्कुटेश्वर-देवगर्ग बिहर सक-वर्ष १०४१ नेय विलम्बि-संवत्सरद फाल्गुणशुद्ध दसमि ब्रहवारदन्दु शुभचन्द्र-सिद्धान्ति-देवर काल कर्चि विट्ट-दत्तिय गोविन्दवाडिगे मूडण-सीमे ईशाज्ञ-दिशेय एरेय को...तोण्टिगेरेय निरुह कुल्लहनहल्लिग होद बट्टेय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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