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अासपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख ३८३ दिब्बेय सारण हुलुमाडिय गडि तेङ्कलु अर्हनहल्लियिन्दा... मदिपुरक्कं हिरिय-देवर बेट्टक्कं होद हेब्बट्टेये गडि हडुवलु हिरिय...हल्ल नजुगेरे बेक्कननिप...बडकलु गङ्गस मुद्रक्के चल्यद हडुवण दिण्नेयिं पडुवलु गडि यिन्ती-चतुस्सीमेयं पूर्वि ...बक्कन... प्रत्यधिवासद...पडु......गोम्मटपुरद पट्टणस्वामि मल्लि सेट्टियरु...सेट्टि गण्डनारायण-सेट्टियु मुख्यवाद नकर-समूहमुमिद माडिद मर्यादे यिन्तीधर्ममं प्रतिपालिसुवर्गे महा-पुण्य अक्कुं॥ वृत्त॥ प्रियदिन्दिन्तिदनेयदे काव पुरुषर्गायु महा-श्रीयुम
केयिदं कायदे कारख पापिगे कुरुक्षेत्रोवियोलु वारणाशियोलेक्कोदि-मुनीन्द्रर कविलेय वेदाढ्यर कोन्दुदोन्दयसंसारमेनुत्त सारिदपुदी-शैलाक्षर सन्ततं ॥ १६ ।। बिरुद-रूवारि-मुख-तिलक गङ्गाचारि खंडरिसिद॥
[ इस लेख में लेख नं. १० ( २५० ) के समान गङ्गराज के कीर्तिवर्णन के पश्चात् उल्लेख है कि उन्होंने विष्णुवर्द्धन नरेश से गोविन्दवाडि ग्राम को पाकर उसे पाश्व देव और कुक्कुटेश्वर की पूजा के हेतु उक्त तिथि को शुभचद्र सिद्धान्त देव का पादप्रक्षालन कर दान कर दिया। जो कोई इस दान का पालन करेगा वह दीर्घायु और वैभव सुख भोगेगा पर जो कोई इसका विच्छेद करेगा उसे कुरुक्षेत्र व बनारस में सात करोड ऋषियों, कपिला गौओं व वेदज्ञ पण्डितो की हत्या का पाप होगा। लेख को गङ्गाचारि ने उत्कीर्ण किया है।
४८७ ( ३८८) ...रिसिदेवगे बिट्ट दत्तिय गद्देय...... २५
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