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श्रवणबेल्गोल के स्मारक चक्रवर्ति के शिष्य बसविसेट्टि ने कठघरे की दीवाल और चौबीस तीर्थकरों की प्रतिमाएँ निर्माण कराई थी और उसके पुत्रों ने उन प्रतिमाओं के सम्मुख जालीदार खिड़कियाँ बनवाई। शिलालेख नं० १०३ (२२८ ) से ज्ञात होता है कि चङ्गाल्व-नरेश महादेव के प्रधान सचिव केशवनाथ के पुत्र चन्न बोम्मरस और नजरायपट्टन के श्रावकों ने गोम्मटेश्वरमण्डप के ऊपर के खण्ड (बल्लिवाड) का जीर्णोद्धार कराया।
परकोटा-गोम्मटेश्वर की दोनों बाजुओं पर खुदे हुए शिलालेख नं० ७५ (१८०)व ७६ ( १७७ ) से विदित होता है कि गोम्मटेश्वर का परकोटा गङ्गराज ने निर्माण कराया था। यही बात लेख नं० ४५ (१२५), ५६ (७३), ६० ( २४०) व ४८६ से भी सिद्ध होती है। गङ्गराज होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन के सेनापति थे। उपयुक्त शिलालेख शक सं० १०४० व उसके पश्चात् के हैं। इसके पहले के शिलालेखों में परकोटे का उल्लेख नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि शक सं० १०३६ के लगभग ही इसका निर्माण हुआ है।
परकोटे के भीतर मण्डपों में इधर-उधर कुल ४३ जिनमूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं, जो इस प्रकार हैं
ऋषभ १ सुमति १ शीतल २ अनन्त १ अजित २ सुपार्श्व १ श्रेयांस १ धर्म १ संभव २ चन्द्रप्रभ ३ वासुपूज्य १ शान्ति ३ अभिनन्दन २ पुष्पदन्त २ विमल २ कुन्थ १
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