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________________ ३७८ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख तीर्त्तदल जिननाथ- पुरवमाडि य... स्तयस ......रदलु......इ घरट्टनेम्ब कोलग... जगलवाडिद...... विष्णुवर्द्धन देवर... को परिहार || द्रोहघरट्ट - नेच्च कोलु | [ इस टूटे हुए लेख में विष्णुवर्द्धन नरेश के प्रधान दण्डनायक गङ्गपथ्य द्वारा बेल्गुल में जिननाथपुर निर्माण कराये जाने का उल्लेख है ] ४७६ ( ३८९ ) जिननायपर में शान्तिनाथ बस्ति से पश्चिमोत्तर की ओर एक खेत में समाधिमण्डप पर ( शक सं० ११३६ ) नमः सिद्धेभ्यः । स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलाचार्यरु राज- गुरुगले निप बेलिकुम्बद श्रो- नेमिचन्द्र - पंडित देवरे न्तःपरेने || वृत । परमजिनेश्वरागम- विचार - विशारदनात्मसद्गुणो तकर - परिपूर्ननुन्नत-सुखार्थि विनेय-जनोत्पल -प्रियं । निरुपम - नित्यकीर्त्ति धवलीकृतनेन्दु लोकमादरिपुदुसूरि... निधि चन्द्रमनं मुनि-नेमिचन्द्रनु || Jain Education International अवर प्रिय शिष्यरम्प श्रीमद्बालचन्द्र-देवर तनयन स्वरूप निरूप...... . नन्तण्ान वाग्विलासवाप.. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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