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________________ ३७६ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख लिईरु श्री मूलसङ्घद अभयदेवरु नाम... दे तम्मुचिपदव... र इद्द ।। ४७४ ( ३८८३ ) स्वस्ति श्री विजयाभ्युदय शालिवाहन शक वरुष १८१२ नेय विरोधि नाम संवत्सरद वैशाख बहुल पञ्चमियल्लु श्रीमद् बेल्गुल निवासियागिद्द मेरुगिरि गोत्रजराद श्री बुजबलैय्यनवरिगे निश्रेय सुखाभ्युदय प्राप्त्यर्थ वागि प्रतिष्ठेय माडिसिदं ॥ [ यह लेख अगल बस्ति की प्रतिमा पर है ] ४७५ (३८५ ) जिननाथपुर में तालाब के निकट एक चट्टान पर साधारण संवत्सरद श्रावण सु १ | श्रा । श्रीमन्महाम ण्डलाचार्यरु राज- गुरुगलुमध्य हिरिय - नयकीर्त्ति - देवर शिष्यरु नय कीर्त्ति - देवरु तम्म गुरुगलु बेक्कनलु माडिसिद बसदिय चेन्न - पारिश्वदेवर प्रष्ट विधार्चनेगे हिरिय-जक्कियंवेय- केरेय हिन्द नन्दन-वनदीलगे गदे सलगे ख २... व्र्वकं माडिकोट्टरु मङ्गल - महा श्री श्री श्री ।। [ उक्त तिथि को महामण्डलाचार्य राजगुरु हिरिय नयकीर्त्तिदेव के शिष्य नयकीर्त्तिदेव ने अपने गुरु ब्रेक की बनवाई हुई बस्ति के चेन्नपार्श्वदेव की अष्टविध पूजन के लिए उक्त भूमि का दान दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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