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________________ आसपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख ३७५ . [ इस अत्यन्त टूटे हुए लेख के प्रथम भाग में चोल और गङ्ग के नरेशों के बीच घोर युद्ध का और अन्तिम भाग में किसी के समाधिमरण का उल्लेख है ] ४७० ( ३७६) उसी बस्ती के रङ्गमण्डप में एक स्तम्भ पर श्री शुभमस्तु । ___ स्वस्ति सद्भुदय शालिवाहन सक वरुस १५५३ प्रजोत्पत्य संवत्सरद पाल्गुण सुध ३ लु कम्ममेन्य लोहित गोत्रद नर्ल मलि सेट्टि मग पालेद पदुमण्णनु यि-बस्ति प्रतिष्टे जी दार माडिदरु मङ्गल महा श्री श्री श्री [उक्त तिथि को कम्ममेन्य लोहितगोत्र के नर्लमलिसेटि के पुत्र पालेद पदुमयण्ण ने इस बस्ति का जीर्णोद्धार कराया। ४७१ ( ३८०) शान्तीवर बस्ति में शान्तोश्वर की पीठिका पर स्वस्ति श्री मूलसङ्घ-देशियगण-पोस्तकगच्छद कोण्डकुन्दान्वय कोल्लापुरद सावन्तन बस दिय प्रतिबद्धद श्री-माघनन्दिसिद्धान्त-देवर शिष्यरु शुभचन्द्र-त्रैविद्य-देवर शिष्यरप्प सागरणन्दि-सिद्धान्त देवरिगे वसुधेक-बान्धव श्रोकरणद रेचिमय्यदण्डनायकरु शान्तिनाथ-देवर प्रतिष्ठेय माडिधारा-पूर्वकं कोट्टरु ४७२ ( ३८१) सङ्गम देवन कोडगिय मने ४७३ ( ३८२) श्रीमतु त्रिकालयोगिगलु मठ मोदलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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