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________________ नगर में के अवशिष्ट लेख शालीवाहन-शकनृप-संवत्सरके समायाते ॥ १॥ एकान-विंशति-युतात्पञ्चशतसहस्रयुग्मकाद्गुणिते । श्री-वर्द्धमान-जिनपति-मोक्ष-गताब्दे च सजाते ॥ २ ॥ एकन्यूनशतार्धात्प्रभवादिगताब्दके च संगुणिते । एवं प्रवर्त्तमाने नलनामाब्दे समायाते ॥ ३ ॥ मीने मासि सिते पक्षे पूर्णिमायान्तिथौ पुनः । अवाक-काशीतिविख्यात-बेल्गुले नगरे मठे ॥ ४ ॥ श्रीचारुकीर्ति-गुरुराउन्तेवासित्व ईयुषां । मनोरथ-समृद्ध सन्मतिसागर-वर्णिनां ॥५॥ कुम्भकोण-पुरस्था श्री-नेक्का श्रावकी शुभा। स्थापयामास सद्विम्बं चन्द्रनाथ-जिनेशिनः ॥ ६ ॥ प्रतिष्ठा-पूर्वकन्नित्य-पूजायै स्वोपलब्धये ।। पञ्च-संसार-कान्तार-दहनाय शिवाय च ॥ ७ ॥ भद्रं भूयात् । ४५७ (४८२) नेमिनाथस्वामी की प्रभावली के पृष्ठ भाग पर (ग्रन्थ अक्षरों में ) (शक सं० १७७८) श्री नेमिनाथाय नमः। अष्टासप्तत्यधिकात्सप्तशतोत्तरसहस्रकाद् णिते । शालीवाहनशकनृपसंवत्सरके समायाते ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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