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________________ नगर में के अवशिष्ट लेख ३६५ श्रो चारुकीर्त्ति-गुरुराडन्तेवासित्वमीयुषाम् । मनारथ-समृद्ध सन्मतिसागर-वर्णिनां ॥ ६ ।। धरणेन्द्र शास्त्रिया शुम्भत्कुम्भकोणं उपयुषा । अनन्तनाथ-बिम्बोऽयं स्थापितस्सन्प्रतिष्ठितः ।। ७ ।। श्री-पञ्चगुरुभ्यो नमः। ४३६ (३५६) उसी मठ में गोम्मटेश्वर की प्रभावलि की पीठ पर (शक सं० १७८०) (ग्रन्थ और तामिल ) श्री श्री-गोमटेशाय नमः अशीत्यधिक-सप्त-शतेोत्तर-सहस्र-सङ्गणित-शालिवाहनशक-वर्षे एकविंशत्यधिक-पञ्चशतोत्तर-द्विसहस्र-प्रमित-श्रीमहति महावीर-वर्द्धमान-तीर्थङ्कर-मोक्षगताब्दे एकपञ्चाशद्गुणित-प्रभवादि-संवत्सरे-प्सति प्रवर्तमान-कालयुक्ति नाम-संवत्सरे दक्षिणायने ग्रीष्मकाले आषाढ-शुक्ल पूर्णिमायां शुभतिथौ श्री-दक्षिणकाशी-निर्विशेष-श्रीमद्-बेल्गुल-भण्डार-श्रीजिनचैयालये नित्यपूजा-श्रीविहारमहोत्सवार्थ श्रीमचारुकीर्ति पण्डिताचार्यवाग्रान्तेवासि-श्री-सन्मतिसागर-वर्णिनां अभीष्ट-संसिद्धार्थ श्रीमद्-गोमटेश्वर-स्वामि-प्रतिकृतिरियं श्रीतजपरीमधिवसद्भयां Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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