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________________ ३६४ नगर में के अवशिष्ट लेख गलन्नु निम्म हवालु-माडिकोण्डु देवस्थानगल दीपाराधने पडितर उत्सव मुन्तागि निरुपाधिक-सर्वमान्यवागि नडसि-कोण्डु बरुवदु रुजु श्रीकृष्ण । ( यहाँ मुहर लगी है) [ इस सनद का भावार्थ लेख नं० १४१ में गर्भित है। ] ४३५ ( ३५५ ) मठ में अनन्तनाथ स्वामी की प्रभावलि की पीठ पर (शक सं० १७७८) (ग्रंथ और तामिल ) श्रीमदनन्तनाथाय नमः अष्टासप्तत्यधिकात्सप्तशतोत्तर-सहस्रकाद्गुणिते । शालिवाहन-शक-नृप-संवत्सरके समायाते ।। १ ।। एकानविंशतियुतात्पञ्च-शत-सहस्र युग्मकाद्गुणिते । श्री वर्द्धमान-जिनपति-मोक्षगताब्दे च सजाते ॥ २ ॥ एक-न्यून-शतार्द्धात्प्रभवादि-गताब्दक सङ्गगिते । एवं प्रवर्तमाने नल-जामाब्दे समायाते ॥ ३ ॥ मीने मासि सिते पक्षे पूर्णिमायान्तिथौ पुनः । अवाकाशीति विख्यात-बेल्गुले नगरे वरे ॥ ४ ।। ... भण्डार-श्री जैन-गेहे श्री-विहारोत्सवाय च । ... प्राजवजव-नाशाय स्व-स्वरूपोपलब्धये ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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