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श्रवणबेलगोल के स्मारक अभिषेक देख सके जिसमें करीब पाँच हजार विन्ध्यगिरि पर थे और शेष सब चन्द्रगिरि पहाड़ पर इधर-उधर बैठकर दूर से अभिषेक देखते थे। महाराजा ने अभिषेक के लिए पाँच हजार रुप्या प्रदान किये। उन्होंने स्वयं गोम्मटस्वामी की प्रदक्षिणा की, नमस्कार किया तथा द्रव्य से पूजन की व कुछ रुपये प्रतिमाजी व भट्टारकजी को भेंट किये व भट्टारकजी को नमस्कार किया। सुबह ६ बजे से दोपहर एक बजे तक इस प्रथम अभिषेक का कार्य अतीव आनन्द व धर्म-प्रभावना के साथ हुआ। इस अभिषेक में जल, दुग्ध, दही, केला, पुष्प, नारियल व चुरमा, घृत, चन्दन, सर्वोषधि, इतुरस, लाल चन्दन, बदाम, खारक गुड़, शक्कर, खसखस, फूल, चने की दाल
आदि का अभिषेक उपाध्यायों द्वारा मचान पर से हुआ। ___कहा जाता है कि जब होयसल-नरेश विष्णुवर्द्धन जैन-धर्म को छोड़ वैष्णव धर्मावलम्बी हो गया तब रामानुजाचार्य ने गोम्मट की मूर्ति को तुड़वा डाला; पर इस कथन में कोई सत्य का अंश प्रतीत नहीं होता क्योंकि मूर्ति आज तक सर्वथा अक्षत है। ___गोम्मटेश्वर की दो और विशाल मूर्तियाँ विद्यमान हैं। ये दोनों दक्षिण कनाड़ा जिले में ही हैं; एक कारकल में और दूसरी एनूर में। कारकल की मूर्ति ४१ फुट ५ इञ्च ऊँची है। इसे सन् १४३२ ईस्वी में जैनाचार्य ललितकीर्ति के उपदेश से वीर पाण्ड्य ने प्रतिष्ठित कराई थी। एनूर की मूर्ति ३५ फुट ऊँची है और सन् १६०४ में चारुकीति पण्डित के
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