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विन्ध्यगिरि
३३ का राज्य-काल उस समय विद्यमान था। भोजदेव के सन् १०१६, १०२२ और १०४२ ईस्वी के उल्लेख मिले हैं।
कुछ वर्षों के अन्तर से गोम्मटेश्वर का मस्तकाभिषेक होता है, जो बड़ी धूमधाम, बहुत क्रियाकाण्ड और भारी द्रव्य-व्यय के साथ मनाया जाता है। इसे महाभिषेक भी कहते हैं। इस मस्तकाभिषेक का सबसे प्राचीन उल्लेख शक सं० १३२० के लेख नं० १०५ ( २५४ ) में पाया जाता है। इस लेख में कथन है कि पण्डितार्य ने सात बार गोम्मटेश्वर का मस्तकाभिषेक कराया था। पञ्चबाण कवि ने सन् १६१२ ईस्वी में शान्तवर्णि-द्वारा कराये हुए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है, व अनन्त कवि ने सन १६७७ में मैसुर नरेश चिक्कदेवराज ओडेयर के मन्त्री विशालाक्ष पण्डित-द्वारा कराये हुए और शान्तराज पण्डित ने सन १८२५ के लगभग मैसूर-नरेश कृष्णराज
ओडेयर तृतीय द्वारा कराये हुए मस्तकाभिषेक का उल्लेख किया है। शिलालेख नं०६८ (२२३) में सन् १८२७ में होने वाले मस्तकाभिषेक का उल्लेख है। सन १६०६ में भी मस्तकाभिषेक हुआ था। अभी तक सबसे अन्तिम अभिषेक हाल ही में-मार्च सन १८२५ में हुआ है जिसके विषय में 'वीर' पत्र में यह समाचार प्रकाशित हुआ है-" ता० १५-३-२५ को श्रीमान महाराजा कृष्णराज बहादुर मैसूर अपने दो सालोंसहित पहाड़ पर पधारे और अपनी तरफ से अभिषेक कराया। बन्दोबस्त बहुत अच्छा था। आज लगभग ३०,००० मनुष्य
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