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________________ ३२ श्रवणबेलगोल के स्मारक टेश की मूर्त्ति की प्रतिष्ठा राचमल्लनरेश के समय में ही हुई थी और इस नरेश का समय शिलालेखों के आधार पर सन् ६७४ से ६८४ तक निश्चित किया गया है । पर इस किंवदन्ती पर विशेष जोर नहीं दिया जा सकता क्योंकि एक तो इसके लिये कोई शिलालेखों का प्रमाण नहीं है और दूसरे यह कथन केवल भुजबलिशतक में ही पाया जाता है, जिसकी रचना का समय ईसा की सोलहवीं शताब्दि अनुमान किया जाता है। जिन अन्य ग्रन्थों में गोम्मटेश की प्रतिष्ठा का कथन है उनमें यह कहीं नहीं कहा गया कि यह कार्य राचमल्ल के जीते ही हुआ था | सन् १७८ ईस्वी में रचे जानेवाले चामुण्डराय पुराण से यह निश्चित है ही कि उस समय तक मूर्त्ति की स्थापना नहीं हुई थी, और सन् २०२८ से पहले के किसी शिलालेख में इस प्रतिष्ठा का समाचार नहीं पाया जाता / एक बात और है जिसके कारण ऊपर निश्चित किया हुआ समय ही गोमटेश की प्रतिष्ठा के लिये ठीक प्रतीत होता है। कहा जाता है कि नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्त्ति चामुण्डराय के गुरु थे और गोमटेश की प्रतिष्ठा के समय उनके साथ थे । द्रव्य-संग्रह नामक ग्रन्थ के टीकाकार ब्रह्मदेव ने ग्रन्थ के मूलकर्त्ता नेमिचन्द्र को धाराधीश भोजदेव के समकालीन कहा है । ऊपर निश्चित किये हुए समय के अनुसार यह कथन प्रयुक्ति-सङ्गत नहीं कहा जा सकता क्योंकि भोजदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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