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विन्ध्यगिरि का है। जिन ग्रन्थों में कल्कि का उल्लेख पाया जाता है उन सबके अनुसार निर्वाण का समय शक सं० से ६०५ वर्ष, विक्रम सं० से ४७० वर्ष व ईस्वी सन् से ५२७ वर्ष पूर्व पड़ता है। अतएव कल्कि मृत्यु का समय सन् ४७२ ईस्वी आता है।
संवत् बहुधा राजा के राज्य-काल से प्रारम्भ किये जाते हैं । अतः कल्कि संवत् सन् ४७२-४२ = ४३० ईस्वी से प्रारम्भ हुअा होगा। गोम्मटेश की प्रतिष्ठा का समय कल्कि संवत् ६०० कहा गया है जो ऊपर की गणना के अनुसार सन् ईस्वी १०३० के बराबर है। हमने स्वामी कन्नूपिलाई के इण्डियन एफेमेरिस से इस संवत् के लगभग उपर्युक्त तिथि, वार, नक्षत्र
आदि का मिलान किया तो २३ मार्च सन् १०२८ को चैत्र सुदि ५ रविवार पाया। इस दिन मृगशिरा नक्षत्र और मौभाग्य योग भो वर्तमान थे, और दक्षिणी गणना के अनुसार यह संवत्सर भी विभव था। इस प्रकार बाहुबलिचरित में दी हुई समस्त बातें इस तिथि में घटित होती हैं, जिससे विश्वास होता है कि गोम्मटेश की प्रतिष्ठा का ठीक समय सन् १०२८,२३ मार्च (शक सं० १५१ ) है।* ___इस तिथि के विरोध में केवल एक किंवदन्ती का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सकता है। वह किंवदन्ती यह है कि गोम
* उपयुक्त विवेचन लिखे जाने के पश्चात् हमें मैसूर पार्किलाजिकल रिपोर्ट १९२३ देखने को मिली । इसमें डा० शाम शास्त्री ने विस्तृत रूप से इसी बात को प्रमाणित किया है।
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