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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३४५ श्रीमतु चारुकीर्त्ति पण्डित देवरु -गलु अवर शिष्यरु अभिनव पण्डित - देवरुगलु बेलुगुलद नाड गवुडुगल माणिक्य नखरद हरु पण्डित स्थानिकरु वैद्यरु...... वरु इसमें बेलुगुल के चारुकीर्त्ति पण्डितदेव [ यह लेख अधूरा है। और अभिनव पण्डित देवका उल्लेख है ] ३६३ ( २६० ) सके १६५५ प्राश्वीज वदि ७... खेरापुत्र...... मखीसा.... .. श्री वानापोसा... नागरी लिपि में ) मासा . गया सफल श्री । सक....... ३६४ (२६१ ) सके १६५३ आश्वीज वद ७ खेरामासा ( नागरी लिपि में ) पुत्र हीरासाछा पोतुखखा जात्रा सफल । ३६५ ( २६२ ) सके १६६३ प्रवोज वद ७ खेरामासा ( नागरी लिपि में ) पुत्र धरमासाळा पौत्र जागा......... जात्रा सफल || Jain Education International ३६६ ( २६३ ) सके १६४३ पौस वदि १२ शुक्रवारे ( नागरी लिपि) भण्डेवेड कीर्त्ति सहित उघरवल जाती होरासा सुत हाससा सुत चागेवा बाई राजाई गोमाई राधाई मन्नाई सहित जात्रा सफल करी कारज कर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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