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________________ ३४४ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख सेट्टिय मग बम्मिसेट्टि गुज्जवे प २ सेलदि सेट्टि मसणिसेट्टि महादेवसेट्टि प १ वासुदेव नायक रामचन्द्र पण्डित चिक्कवासुदेव प २ सेनबोव-तिब्बसेट्टि प १ जयपिसेट्टि वम्मि सेट्टि पदुमिसेट्टि चिक्कजयपिसेट्टि प २ अङ्गडिय महदेवसेट्टि गोम्मटसेट्टि महदेवि सोमक्क प २ केतिसैट्टिय आदिसेट्टि प १......... ...य्य .,....मग अल्लडिप्प पडि...होङ्ग गद्याण नाल्क कोडुवरु ४ वर्द्धमान हेग्गडे नागवे हेग्गडिति बाहुबलि कलवे प २ कंदार वेग्गडे कन्नवे हेग्गडित्ति जक्कन हुरिय कडलेय केति सेट्टि जक्किसेट्टि प २ कालिसेट्टि मरुदेवि चागवे हेग्गडित्ति बोकवे-हगाडित्ति प २ मोसले के बडुव्यवहारि बसवि सेट्टि के प्रतिष्ठित कराये हुए चतुर्विशति तीर्थङ्करों की अष्टविध पूजार्चन के हेतु उपयुक्त सज्जनों ने उपयुक्त वार्षिक चन्दा देने की प्रतिज्ञा की। ] ३६२ ( २५७ ) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासन।।१।। स्वस्ति श्री शकवर्ष १३७१ नेय युव संवत्सरद वैशाख शुद्ध १० गु. स्वस्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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