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________________ ३४० विन्ध्यगिरि पर्वत के प्रवशिष्ट लेख कोत्तनगवुड बसट्टर गवुड......हलिय तिर्त्तवन मुयि मर्या.. [यह किसी ग्राम का बैनामा सा ज्ञात होता है । ] ३५५ ( २३१ ) पण्डित देवरु माडित्तु माहाभिषेकदोलगे हाल-मोसरोगे २ पुजारिगे १ भागि केलसिगलिगे कलुकुटिगरिगे भागि २ भण्डि कारङ्ग १तप्पिदवर कै सास्ति चरु हरियाणी [लेख का भावार्थ कुछ संदिग्ध है। शायद इसमें महाभिषेक के लिए व पुजारियों, कारीगरों और मजदूरों को पण्डित देव के दान का उल्लेख है। ३५६ ( २३२ ) श्रीमतु व्यय संवत्सरद माग सुद्ध १३ नेय त्रयोदसियलु करिय-कान्तणसेट्टियर मक्कलु करिय-बिरुमण सेट्टियर तम्म करियगुम्मट सट्टियरु बिडितियिन्द सङ्गव कुडिकोण्डु बेलुगुलदलु गुम्मटनाथन पादद मुन्दे रत्नत्रयद नाम्पिय उद्यापनेय माडि सङ्घयपूजेय माडि कीर्तिपुण्यवनु उपार्जिसिकोण्डरु श्री। [उक्त तिथि को करिय कान्तण सेट्टि के पुत्र व करिय बिरुमण सेट्टि के भ्राता गुम्मटसेटि ने एक संघ सहित बेलुगल की वन्दना की और गोम्मटनाथ के दर्शन कर कीर्ति और पुण्य का उपार्जन किया।] ३५७ ( २३३ ) श्रीमतु करिय बोम्मणगे गुम्मटनाथ ने गति कं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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