SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३४१ ३५८ (२३८) संवत १८०० कत सद ६ सवत १८०० ( नागरी लिपि में ) पह-स २ पत दव पनपथ दनचद परवल क बप । ३५८ ( २४८ ) सब १८०० मत पह सद ८ मंगलवर (नागरी लिपि में) कट रद्द व गरधर लल वजमल क बट व मगतरय कट रयक बट बणमल गमट सम क जत कर । ३६० (२५१ ) ( यह लेख, शिलालेख नं० -६० (२४०) के प्रथम १५ पद्यों की हूबहू कापी मात्र है ) ३६१ ( २५२ ) स्वस्ति श्रीमतु वड्डव्यवहारि मोसलेय.. वि सेट्टियह तावु माडिसिद चवीस तीर्थकर अष्टविधार्चनेगे वरिषनिबन्धियागि माणिक्यनकर.. . शस-नकरङ्गलु कोट्ट पडिप... गे हाग ।... व सेट्टि बाचिसेट्टि चिक्क बाचिसेट्टि प २ सम्मेलेय केटि सेट्टि चन्दि सेट्टि गुम्मि सेट्टि चिक्कतम्म, प २ आादिसेट्टि चैौडिसेट्टि १ बाचिसेट्टि अथिबिसेट्टि जकयेमैदन बादिसेट्टि बाचि सेट्टि मारिसेट्टि वम्मिसट्टि प २ माचि सेट्टि नम्ब्रिसेट्टि मस रिसेट्टि केतिसेट्टि प २ केतिसेट्टि रेविसेट्टि हरियमसेट्टि कोम्मिसेट्टि प्रादिसेोट्ट चिक्क-केति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy