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________________ ३३८ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख पुट्टिदर पम्पराज हरिदेवं मन्त्रि-यूथाग्रणि गुणि बल(पूर्व) देवण्यनेन्दिन्तिवम्मूवरुमुर्वी-ख्यात-कर्नाटिक कुल-तिलकर्माचि-राजङ्ग मावन्दिररात्यु च्चण्ड-शक्तर(दक्षिण)-जिनपति-पद-भक्तर्महाधारयुक्तर ।। सकल-सचिव-नाथः साधिताराति-यूथः । परिहृत-पर-दारो (पश्चिम) .........भारती-कण्ठ-हारः । विदित-विशद-कीर्तिर्विश्रुतादार-मूत्ति स्स जयतु बलदेवः श्री जिनेन्द्राति सेवः ।। [अरसादित्य (व नृप श्रादित्य) और प्राचाम्बिके को सुख देनेवाले तीन पुत्र उत्पन्न हुए--पम्पराज, हरिदेव और मन्त्रि-समूह में अग्रगण्य, गुणी बलदेव । ये लेोक-प्रसिद्ध कर्णाटक कुल के तिलक, माचिराज के पितृव्य, शत्रुओं के लिए प्रचण्ड-शक्ति, जिन-पद-भक्त महा साहसी थे। समस्त मन्त्रियों के नाथ, शत्रुओं को वश करनेवाले, परस्त्री-त्यागी, सरस्वती देवी के कण्ठहार, विशुद्ध कीर्ति, प्रसिद्ध और उदार-मूर्ति जिनेन्द्र-पद-सेत्री बलदेव जयवान् हो । ] ३५२ ( २२२) कालायुक्त संवत्सरद माघ ब १२ लु गुम्मि सेट्टि मग..................सेट्टि दर्शनव आदनु ॥ कालायुक्त संवत्सरद माघब १२...पुट्टण्न मग चिकण्ननु दर्शनव प्रादरु ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ww
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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