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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत के प्रवशिष्ट लेख ३३५ ३३७ (२०७ ) श्री गणसा अ नमः साम्रा कपूरचन्द मेतीचन्द शतीदी रा सावत १८०० मगशरा वदी १३ गराऊ । | श्रीगणेशाय नमः । संवत् १८०० मगसर वदि ३३८ (२०८ ) सवत १८४२ मह सद ५ अतदस अगरवल दलवल पनपथय व सट भगवनदस जतरक अय । लाव कपूरचन्द मोतीचन्द शतीदी रा १३ गुरौ ] [ संवत् १८४२ माह मुदी ५ श्रतदास अगरबाला दिल्लीवाला पनथिया वो सेठ भगवानदास जात्रा को आये ] ३३८ ( २० ) सवत १८०० पोस बद १४ मङ्गराय बालकी सनजी तेसुवको षण्डेलवाल बुधलाल गङ्गरामज करणो भोग...... ३४० ( २१० ) सवत १८०० मत असड सद १० सन चरवर सतष रयज बलकसनज प्रजदतज चनरय व दनदयल प्रबट प्रजदतज इक जतर इसथन पठक अगरवल सरवग पनपथक गयलगत प्रयथ Jain Education International [ संवत् १८०० मिली श्राषाढ़ सुदि १० शनीचरवार सन्तोषरायजी बालकिसनजी श्रजीतजी चैनराय व दीनदयाल व बेटा श्रजीतजी एक जातरा स्थान पेठका अगरवाला सरावगी पानीपत का गोयल गोत्री आये थे ] २२ 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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