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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३३१ (२०१ )संवत् १६३५...पिमतीच-स। फ [ नागरी लिपि में ] सुदीय सेनवीरमतजी श्री-जगतकरतजी पदाभट्टोदराजी प्ररसटीवदव...उ... मघोपदे श्री-रायसोरघजी। ३३२ (२०२) संवत् १५४८ पराभव सं. जे. सुद्द ३ [ नागरी लिपि में ] मूलसङ्घ अगुषजे श्री-जगद् त...ज्ञाकपड ......लं तडमत् मेदाराजद् सतराब ३३३ (२०३) संवत् १५४८ वरुषे चैत्र वदि १४ द [ नागरी लिपि में ] ने भटारक श्री अभयचन्द्रकस्य शिष्य ब्रह्मधर्मरुचि ब्रह्मगुणसागर-पं ॥ की का यात्रा सफल । ३३४ ( २०४) गेरसोपेय अप-नायकर मग लिङ्गण्णनु साष्टाङ्गवेरगिदनु ३३५ (२०५) प्रामाची रकम ठऊ [ठेऊ] [ नागरी लिपि में ] [२] तुमची कम घऊ [घेऊ ] [ ३३६ से ३५० तक के लेख नागरी अक्षरों में हैं ] ३३६ ( २०६ ) श्री गणशान नम शाओ हरखचन्ददसजी शवत १८०० मीगशर वीदी १३ गराऊ। [श्री गणेशाय नमः । साव हरखचन्द्रदासजी संवत् १८०० मगसर वदि १३ गुरौ] Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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