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________________ ३२२ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख न्दर- गम्भीरद नेमि से [ट्टि] युमिव श्रीजैन-धर्म्मके तायगरंगल तामेने सन्द पेम्पसदलम्पर्व्विन्तु भू-भागदे लू || ३ || कन्द || अमल-यशरमल-गुण-गणरमलिन-जिन - शासन- प्रदीप करेने पे पमरे पाय्सल - सेट्टियु ममेय - गुणि नेमि सेट्टियु सुखदिनिरलु ॥ ४ ॥ प्रवर जननिय रेनल्की भुवनतलं पोगले माचिकब्बेयुमुद्यद्विविध-गुणि शान्तिकब्बेयु मवर्गलु जिन- जननिय नरुर्बीतल दोलू ।। ५ ।। ( उसी 'तेरु' के पश्चिम मुख के ऊपरी भाग पर ) जिन - गृहमं मना - मुददे माडिसि मन्दरमं विनिर्मिसि - ईनुपम - भानुकीर्त्ति - मुनि-से दिव्य पदाब्ज- मूलदालू । मनमादिर्व्वरुं परम- दीक्षेयनोप्पिरे ताल्दिदर्जंगज्जन-तति कीर्त्तिसल्के मरु देबियु [ मिम् ] बिने सान्तिकब्बे ॥ ६ ॥ श्री मूलसङ्गदाल मत्ता-महिमन्नतमेनिप्प देसिग - गणदेालु तामिर्व्वरुमखिल-गुणो हामेरेने नेगरिन्तु नान्तरुमोलरे ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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