SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 502
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३१३ (उसी पीठ के बायें पृष्ठ पर ) ..."ज्जिने शुभकीर्ति-देव-विदुषा विद्वेषि-भाषा-विष. ज्ज्वाला-जाङ्गलिकेन जिमित-मतिर्बादी वराकस्स्वयं ॥३॥ घन-दोन्नद्ध-बौद्ध-क्षितिधर-पवियी बन्दनी बन्दनी बन्दने सन्-नैय्यायिकाद्यत्तिमिर-तरणियी बन्दनी-बन्दनी बन्दने सन्-मीमांसकाद्यत्करि-करिरिपुयीब न्दनी बन्दनी बन्दने पो पो वादि-पोगेन्दुलिवुदु शुभकीत्तीद्ध-कीर्ति प्रघोषं ॥४॥ वितथोक्तियल्तजं पशुपति शार्डियेनिप्प मूवलं शुभकीर्तिव्रति-सन्निधियोलु नामोचित-चरितरे तोडईडितर-वादिग ललवे ॥ ५॥ सिङ्गद सरमं केल्द मतङ्गजदन्तलुकलल्लदे सभेयोलु पोङ्गि शुभकीर्ति-मुनिपनोलेङ्गल नुडियल्के वादिगल्गे ण्टेल्देये। पोल्वुदु वादि वृथायासं विबुधोपहासमनुमानोपन्यासं निन्नी वासं सन्दपुदे वादि-वज्राशनाल ॥६॥ सत्सधर्मिगल ।। [ यह लेख टूटा हुआ है पर इसके सब पद्य अन्य शिलालेखों से पूरे किये जा सकते हैं। इसके छहों पद्य शिलालेख नं० ५० (१४०) के पद्य ६,७,३८,३६,४० और ४२ के समान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy