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३१२ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख बेल्पि पिरिदु वर...र्द्धमानर परमतपोध...रकीति ...मुझे जगदालु ॥
'च्छिध्यरु ॥ तीर्थाधीश्वर-व
[ इस लेख में भानुकीर्त्ति, बालचन्द्रमुनि और वर्द्धमान मुनि का उल्लेख है। अधूरा होने के कारण लेख का प्रयोजन ज्ञात नहीं हो सका।]
पृष्ठभाग का प्रथम पद्य पम्प रामायण श्राश्वास १ पद १५ से मिलता है।
१८८ (७२) चन्द्रगुप्त बस्ति में पार्श्वनाथ जिनालय के
क्षेत्रपाल के पादपीठ पर ( लगभग शक सं० १०६७ )
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...जनिष्ट.........रित्र...रखिला......माला-शिलीमुख-वि
राजित-पा...... ॥ १ ॥ तच्छिष्यो गुण... ‘त यतिश्चारित्र-चक्रेश्वरः तर्क-
व्यादि -शास्त्र-निपु' 'साहित्य-विद्या-नि... मिथ्या-वादि-मदान्ध-सिन्धुर-घटा-सङ.........रवो भव्याम्भोज ( यहाँ पाषाण टूट गया है )......॥२॥
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