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विन्ध्यगिरि "कल्क्यब्दे षटशताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे
पञ्चम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे। सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटित-भगणे सुप्रशस्तां चकार
श्रीमच्चामुण्डराजो बेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठाम् ॥" अर्थात् कल्कि संवत् ६०० में विभव संवत्सर में चैत्र शुक्ल ५ रविवार को कुम्भलग्न, सौभाग्य योग, मस्त ( मृगशिरा) नक्षत्र में चामुण्डराज ने बेल्गुल नगर में गोमटेश की प्रतिष्ठा कराई। विद्याभूषण, काव्यतीर्थ, प्रो० शरच्चन्द्र घोषाल ने इस अनुमान पर कि यह तिथि गङ्गनरेश राचमल्ल के समय में ( सन् ६७४ और ६८४ के बीच ) ही पड़ना चाहिये, उक्त तिथि को तारीख २ अप्रेल १८० ईस्वी के बराबर माना है। उनके कथनानुसार इस तारीख को रविवार चैत्र शुक्ल ५ तिथि थी और कुम्भ लग्न भी पड़ा था। हमने इस तारीख का मि० स्वामी कन्नूपिलाई के 'इंडियन एफेमेरिस से मिलान किया तो २ अप्रेल ८० ईस्वी को दिन शुक्रवार और तिथि १४ पाये। न जाने प्रोफेसर साहब ने किस आधार पर उस तारीख को रविवार और पञ्चमी तिथि मान लिया है। इसके अतिरिक्त प्रोफेसर साहब की तारीख में एक और भारी त्रुटि है। ऊपर उद्धृत श्लोक में संवत्सर का नाम 'विभव' दिया हुआ है। पर सन् १८० ईस्वी (शक सं० २०२ ) 'विभव' नहीं 'विक्रम' संवत्सर था। इन कारणों से प्रो० घोषाल की निश्चित की हुई तिथि में सन्देह होता है।
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