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श्रवणबेलगोल के स्मारक
पहाड़ी पर विराजमान कर उनकी पूजन-अर्चन किया करते थे । जाते समय वे इन मूत्तियों को उठाने में असमर्थ हुए, इसी से वे उन्हें उसी स्थान पर छोड़कर चले गये ।
उपर्युल्लिखित प्रमाणों से यह निर्विवादतः सिद्ध होता है कि गोम्मटेश्वर की स्थापना चामुण्डराय द्वारा हुई है। शिलालेख नं० ८५ (२३४ ), १०५ (२५४ ), ७६ (१७५ ) और ७५ ( १७८ ) भी यही बात प्रमाणित करते हैं। शिलालेख नं० ७५, ७६ मूर्त्ति के आस-पास ही खुदे हैं और मूर्ति के निर्माण समय के ही प्रतीत होते हैं । चामुण्डराय कौन थे ? भुजबलिशतक प्रादि ग्रन्थों से विदित होता है कि चामुण्डराय गङ्गनरेश राचमल्ल के मन्त्री थे । शिलालेख नं० १३७ (३४५) से भो यही सिद्ध होता है। राचमल्ल के राज्य की प्रवधि सन् १७४ से ६८४ तक बाँधी गई है । अत: गोम्मटेश्वर की स्थापना इसी समय के लगभग होना चाहिये । चामुण्डराय का बनाया हुआ एक चामुण्डराय पुराण मिलता है। इसमें ग्रंथसमाप्ति का समय शक सं० ८०० (सन् ६७८ ईस्वी) दिया हुआ है। इसमें चामुण्डराय के कृत्यों का वर्णन पाया जाता है पर गोम्मटेश्वर की प्रतिष्ठा का कहीं उल्लेख नहीं है। इससे अनुमान होता है कि उक्त ग्रन्थ की रचना के समय ( सन् -७८ ई०) तक चामुण्डराय को इस महत्कार्य के सम्पादन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था । बाहुबलि - वरित्र में गोम्मदेश्वर की प्रतिष्ठा का समय इस प्रकार दिया है :
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