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विन्ध्यगिरि
२७ निकले। जब उन्होंने श्रवणबेलगोल की छोटी पहाड़ी पर से स्वर्ण बाण चलाये तब बड़ी पहाड़ी पर पोदनपुर के गोम्मटेश्वर भगवान् प्रकट हुए। चामुण्डराय ने भगवान के हेतु कई ग्रामों का दान दिया। उनकी धर्म-शीलता से प्रसन्न हो राजमल्ल ने उन्हें राय की उपाधि दी। १८वीं शताब्दि के बने हुए अनन्त कविकृत गोम्मटेश्वरचरित में यह वार्ता है कि चामुण्डराय के स्वर्ण बाण चलाने से गोम्मट की जो मूर्ति प्रकट हुई उसे उन्होंने मूर्तिकारों से सुघटित कराकर अभिषिक्त और प्रतिष्ठित कराई। स्थलपुराण में समाचार है कि पौदनपुर की यात्रा करते समय चामुण्डराय ने सुना कि बेलगोल में अठारह धनुष प्रमाण एक गोम्मटेश्वर की मूर्ति है। उन्होंने उसकी प्रतिष्ठा कराई और उसे एक लाख छयान्नवे हजार वरह की आय के ग्रामों का दान किया। चामुण्डराय को अपनी अपूर्व सफलता पर जो गर्व हुआ उसे खर्व करने के हेतु पद्मावती देवी गुल्लकाजि नामक वृद्धा स्त्रो के वेष में अभिषेक के अवसर पर उपस्थित हुई थीं। राजावलिकथा के अनुसार गुल्लकाजि कूष्माण्डिनि देवी का अवतार थी। इस ग्रंथ में यह भी कहा गया है कि प्राचीन काल में राम, रावण और रावण की रानी मन्दोदरि ने बेलगोल के गोम्मटेश्वर की वन्दना की थी। सत्रहवीं शताब्दि के चिदानन्दकवि-कृत मुनिबंशाभ्युदय काव्य में कथन है कि गोम्मट और पार्श्वनाथ की मूर्तियों को राम और सीता लङ्का से लाये थे और उन्हें क्रमश: बड़ी और छोटी
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