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श्रवणबेलगोल के स्मारक
बह निकला। उस वृद्धा स्त्री का नाम इस समय से 'गुल्लकायजि' पड़ गया। इसके पश्चात् चामुण्डराय ने पहाड़ी के नीचे एक नगर बसाया और मूर्ति के लिये ६६ हजार 'वरह' की आय के गाँव ( ६८ के नाम दिये हुए हैं ) लगा दिये। फिर उन्होंने अपने गुरु अजितसेन से इस नगर के लिये कोई उपयुक्त नाम पूछा। गुरु ने कहा 'क्योंकि उस वृद्धा त्री के गुल्लकायि के दुग्ध से अभिषेक हुआ है, अतः इस नगर का नाम बेल्गोल ठीक होगा। तदनुसार नगर का नाम बेल्गोल रक्खा गया और उस 'गुल्लकायजि' स्त्री की मूर्ति भी स्थापित की गई। इस प्रकार इस अभिनव पोदनपुर की स्थापना कर चामुण्डराय ने कीर्ति प्राप्त की। इस काव्य के कर्ता पञ्चबाण का नाम शक सं० १५५६ के एक लेख नं० ८४ (२५०) में आता है।
अन्य ग्रन्थों में उपर्युक्त विवरण से जो विशेषताएँ हैं वे संक्षेप में इस प्रकार हैं। दोड्डय कवि-कृत 'भुजबलिशतक' में कहा गया है कि सिंहनन्दि आचार्य के शिष्य राजमल्ल द्राविड देश में मधुरा के राजा थे। ब्रह्मक्षत्र-शिखामणि चामुण्डराय, सिंहनन्दि आचार्य के प्रशिष्य व अजितसेन और नेमिचन्द्र के शिष्य, उनके मन्त्री थे। राजमल्ल को किसी व्यापारी द्वारा पोदनपुर में कर्केतन-पाषाण-निर्मात गोम्मटेश्वर की मूर्ति का समाचार मिला। इसे सुनकर चामुण्डराय अपनी माता और गुरु नेमिचन्द्र के साथ राजा की प्राज्ञा ले, यात्रा को
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