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विन्ध्यगिरि भक्ति से प्रसन्न होकर गोम्मटेश्वर तुम्हें यहीं बड़ी पहाड़ी (विन्ध्यगिरि ) पर दर्शन देंगे। तुम शुद्ध होकर इस छोटी पहाड़ी (चन्द्रगिरि ) पर से एक स्वर्ण बाण छोड़ो, और भगवान् के दर्शन करो। मात श्री को भी ऐसा ही स्वप्न हुआ। दूसरे दिन प्रात:काल ही चामुपडराय ने स्नान-पूजन से शुद्ध हो छोटी पहाड़ी की एक शिला पर अवस्थित होकर, दक्षिण दिशा को मुख करके एक स्वर्ण बाण छोड़ा जो बड़ो पहाड़ी के मस्तक पर की शिला में जाकर लगा। बाण के लगते ही गोम्मट स्वामी का मस्तक दृष्टिगोचर हुआ। फिर जैनगुरु ने हीरे की छैनी और मोती के हथौड़े से ज्योंही शिला पर प्रहार किया त्योंही शिला के पाषाण-खण्ड अलग जा गिरे और गोम्मटेश्वर की पूरी प्रतिमा निकल आई। फिर कारीगरों से चामुण्डराय ने दक्षिण बाजू पर ब्रह्मदेव सहित पाताल गम्ब, सन्मुख ब्रह्मदेवसहित यक्ष-गम्ब, ऊपर का खण्ड; ब्रह्मसहित त्यागद कम्ब, अखण्ड बागिलु नामक दरवाजा और यत्र-तत्र सीढ़ियाँ बनवाई। ____ इसके पश्चात् अभिषेक की तैयारी हुई। पर जितना भी दुग्ध चामुण्डराय ने एकत्रित कराया उससे मूर्ति की जंघा से नीचे के स्नान नहीं हो सके। चामुण्डराय ने घबराकर गुरु से सलाह ली। उन्होंने आदेश दिया कि जो दुग्ध एक वृद्धा स्रो अपनी 'गुल्लकायि' में लाई है उससे स्नान कराओ। आश्चर्य कि उस अत्यल्प दुग्ध की धारा गोम्मटेश के मस्तक पर छोड़ते ही समस्त मूर्ति के स्नान हो गये और सारी पहाड़ी पर दुग्ध
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