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चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख प्रति-मणक रम्य-सुरलोक-सुकक्के भागि प्रा.. पल्लवाचारि-लिकि (खि) तम् । [ दक्षिण भाग की मदुरा (नगरी) से पाकर और शाप के कारण सर्प द्वारा सताये जाकर, परीक्षकों के विचार करते ही करते, अक्षयकीर्ति भक्तिपूर्वक इस शिखर पर व्रतों का पालन करते हुए दुःख-सागर को पार कर, रमणीक सुरलोक-सुख के भागी हुए।
पल्लवाचारि लिखित ] १५८ ( २२)
श्री । बाला मेल सिखि-मेले सर्पद महा-दन्ताप्रदुल सल्ववोल
सालाम्बाल-तपेोग्रदिन्तु नडदों नूरेण्टु-संवत्सरं केलीय पिन कट वप्र-शैलमडद एनम्मा कलन्तूरनं बाले पेग्डैरवं समाधि-नेरेदोन्नो-तेरिददार स्सिद्धियान ।। [ इस लेख में कालन्तूर के किसी मुनि के कटवन पर एक सौ पाठ वर्ष तक तप के पश्चात् समाधिमरण की सूचना है।]
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नम स्वस्ति ।
... शास्त्रविदो येन गुणदेवाख्य-सूरिणे कल्वाप पर्वत-विख्याते...नम...तमाग... ...द्वादश-तपो नुष्ठा...... सम्यगाराधनं कृत्वा स्वर्गालय........
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