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________________ ३०७ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख १५३ (१३) राग-द्वेष-तमो-माल-व्यपगतशुद्धात्म संयोद्धकर वेगूरा परम-प्रभाव-रिषियरस्सव-भट्टारकर ...गादेव......न...डित...न्तब्बु......लग्रदोल श्री कीर्णामल-पुष्प.........र स्वर्गाप्रमानेरिदार [ रागद्वेष रूपी अन्धकार से विमुक, शुद्धात्म योद्धा बेगूरा वासी परम-प्रभावी ऋषि, सर्वज्ञ भट्टारक..................शिखर पर...... ................अमल पुष्पों से श्राच्छादित .....स्वर्ग के अग्रभाग का आरोहण किया। १५४ (१४ ) अरिष्टनेमिदेवर काल्बप्पु-तीर्थदोलु मुक्तकालम पडेदु मु... १५५ ( १५ ) स्वस्ति श्री महावीर...प्राल्दुर तम्मडिगल सन्यसन दिन इ-तम्मजया निसिधिगे। १५६ (१६)......पादपमनून......स-प्रव...... १५७ (१६) स्वस्ति श्री भण्टारक थिट्टगपानदा तम्मडिगल शिष्यर कित्तेरे-यरा निसिधिगे । १५८ ( २१) दक्षिण-भागदामदुरे उद्यम् इनिताव...शापदे पावु मुदिदोन लक्षणवन्तर एन्त एनलू उरग......ग ई महा परूतदुल अक्षय-कीर्ति तुन्तकद वार्द्धिय मेल अदु नोन्तु भक्तियिम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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