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________________ २८८ श्रवणबेलगोल नगर में के शिलालेख इन्तिवर गुरुगलप्प श्रीमद्वयाकरणन्दि- सिद्धान्त - देवरु || वृत || आ-मुनि दीक्षेय कुडे समग्र तपो-निधियागि दान-चिन्तामणियागि सद्गुण-गणामखियागि दया-दम क्षमाश्री मुख-लक्ष्मियागि विनयार्णव- चन्द्रिकेयागि सन्तत श्रीमति गन्तियन्नै गल्दरुर्व्विये । लुबरे कूर्त्त कीर्त्तिसलु ॥ ८ ॥ श्रीमति गन्तियर्ज्जित - कषायिगलुप्रतपङ्गलिन्द मिती महियाल पोगर्त्तगे नेगतेंगे नान्तु समाधियिं जगत्स्वामियेनिप्प पेपिन जिनेन्द्रन पाद-पयोज-युग्मम - प्रेमदे चित्तदा निलिसि देवनिवास - विभूतिगेरिददलु || || सक वर्ष १०४१ नेय विलम्बि सम्बत्सरद फाल्गुणुशुद्ध पञ्चमी- बुधवार- दन्दु सन्न्यसन - विधियि श्रीमति गन्तियम्मुडिपि देवलोकक्के सन्दर ॥ अगणितमेने चारु-तपं प्रगुणिते गुण-गण-विभूषणालङ्कृते यिन्तगणित - निजगुरुगे -निसि घिगेय माङ्कब्बे गन्तियम्र्म्माडसिदर् ॥ १० ॥ करुण ं प्राणि-गणङ्गलाल चतुरतासम्पत्ति सिद्धान्तदोल परितोष गुण-सेव्य-भव्य-जनदोल निर्मत्सरत्व' मुनीश्वररोल धीरते घोर-वीर-तपदाल कयूगण्मि पोमल दिवाकरणन्दि प्रति पेम्पनें तलेदना योगीन्द्र-वृन्दङ्गलाल ॥११॥ " " Jain Education International ^ [ यह लेख देशिय गण कुन्दकुन्दान्वय के दिवाकर नन्दि और उनकी शिष्या श्रीमती गन्ती का स्मारक है । दिवाकर नन्दि बड़े भारी योगी थे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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