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________________ श्रवणबेलगोल नगर में के शिलालेख तस्यान्वयेऽजनि ख्याते विख्याते देशिके गये । गुणी देवेन्द्र- सिद्धान्त-देवो देवेन्द्र वन्दितः ॥ ३ ॥ अवर सन्तानदोल || " thing वृत्त । पर-वादि क्षितिभृन्निशात- कुलिश श्री-मूल-सङ्घाब्जपट - चर' पुस्तकगच्छ देशिग गण प्रख्यात योगीश्वरा— भरण' मन्मथ-भञ्जनं जगदोलाद ख्यातनाद दिवाकरणन्दि प्रतिपं जिनागम-सुधाम्भोराशि-ताराधिपं ॥ ४ ॥ अन्तेन लिन्तेनल्क रियेनेय्दे जगत्त्रय-बन्धरप्पपे पं तले दिर्दरेम्बुदने बल्लेनदल्लदे संयम चरित्रं तपमेम्बिवत्तलगमिन्तु दिवाकरनन्दि-देव-सिद्धान्तिगेन्दsोन्दु रसनेोक्तियोलानदनेन्तु व ि॥ ५ ॥ तत्शिष्यरप || नेरेये तनुत्रमिदिवालिर्द मलन्तिने मेय्यनाम्युं तुरिसुबुदिल्ल निद्दे वरे मग्गुल निक्कु बुदिल्ल बागिल । किरु तेरेयेम्बुदिल्लुगुल्वुदिल्ल मलङ्गुवुदिल्लहीन्द्रनुं नेरेवने दसगुण गावलियां मलधारि देवर ॥ ६ ॥ अवरशिष्यर || २८७ वृत्त । कन्तुमदापहर्क्स कल - जीव दया पर - जैन-मार्ग-राद्धान्त - पयोधिगलु विषय- वैरिगलुद्धत-कर्म-भञ्जनसन्तत-भव्य-पद्म-दिनकृत्प्रभर शुभचन्द्र-देव-सिद्धान्त-मुनीन्द्रर पोगवुदम्बुधि-वेष्टित-भूरि-भूतलं ॥ ७ ॥ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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