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२८६ श्रवण बेल्गोल नगर में के शिलालेख ......क्त्या मुदा धारापूर्वक मुद्धरा-स्तुति-भृ......... ............श्री श्री
भव्याम्भोरुह-भास्करस्सुरस रिनोहारवु ......... ..................निः पुरार्थ्य-रत्नाकरः ।
सिद्धान्ताम्बुधि-वर्द्धनामृतकरः कन्दर्पशैलाशनिस्सोऽयं विश्रुत-भानुकीर्ति-मुनि.........तभूतले ॥४६॥
[ इस लेख में भी होयसलवंशी नारसिंह देव के वंश-परिचय के पश्चात् उनका चतुर्विशति मन्दिर की वन्दना करने तथा हुल्ल द्वारा सवमेरु ग्राम का दान करने का उल्लेल है । इस लेख में हुल्ल के लघु भ्राता लक्ष्मण का व श्रमर का भी नाम आया है । नारसिंह देव ने उक्त बस्ती का नाम भव्यचूडामणि रक्खा । हुल्लराज की उपाधि सम्यक्तव चूडामणि थी। लेख का अन्तिम भाग बहुत घिस गया है। इसमें हुल्लय्य हेग्गडे, लोकय्य श्रादि द्वारा नारसिंह देव को प्रार्थनापत्र देकर गोम्मटपुर के कुछ टेक्सों का दान चतुर्विशति तीर्थ कर बस्ति के लिये कराने का उल्लेख है। अन्त में भानुकीर्ति मुनि का भी उल्लेख है।]
१३८ ( ३५१) मठ के उत्तर की गोशाला में
(शक सं० १०४१) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोध-लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्य-नाथस्य शासनं जिन-शासनं ॥१॥ स्वस्ति श्री-वर्तमानस्य वर्द्धमानस्य शासने । . श्री-काण्डकुन्दनामाभूच्चतुरङ्गुलचारणः ॥२॥ .
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