SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 472
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रवण बेलगोल नगर में के शिलालेख २८३ दूरी-कृत-कलि-स्यूत-नृ-कलङ्कन भूयसा । चरित्र-पयसा कीर्ति-धवलीकृत-दिशालिना ॥ ३४ ॥ त्रिशक्ति-शक्ति-निर्भिन्न-मदवद्भरि-वैरिणा। हुल्लपेन जगन्नत-मन्त्रि-माणिक्य-मौलिना ॥ ३५ ॥ चतुर्विशति-जिनेन्द्र-श्री-निलय मलयाचलं । सद्धर्म-चन्दनोद्भूतौ दृष्ट्वा निर्मापितं ततः ॥ ३६॥ द्वितीयं यस्य सम्यक्तव-चूड़ामणि-गुणाख्यया। भव्य-चूड़ामणिन्नाम तस्मै प्रोत्या ददात्ततः ॥ ३७ ।। दानार्थ भव्य-चूड़ामणि-जिन-बसता वासिना सन्मुनीनां भोगार्थ चानुजीगोंद्धरण मिह जिनेन्द्राष्टविध्यर्चना । श्री-पार्श्व-स्वामिनां च त्रिजगदधिपतेः कुक्कुटेशस्य पत्युः । पुण्यश्री-कन्यकाया विवहन-विधये मुद्रिकामर्पयन्वा ॥३८॥ एकाशीत्युत्तर-सहस्र-शक-वर्षेषु गतेषु प्रमादिसंवत्सरस्य पुष्य-मास शुद्ध शुक्रबारचतुर्दश्यामुत्तरायणसंक्रान्ती श्री-मूल-संघदेशियगणपुस्तकगच्छसम्बन्धिनं विधाय ॥ नरसिंह-हिमाद्रितदुध्रित-कलश-हद-क-हुल्ल-कर-जिहिकेया नत-धारा गङ्गाम्बुनि सचतुर्विशतिजिनेश-पादसरसीमध्य। सवणेरुमदाद्भूपतिरगणित-बलि-कपन -नृपति-शिवि-खचर पतिः प्रगुणित-कुबेरविभवत्रिगुणीकृत-सिंहविक्रमो नरसिंहः ।३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy