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________________ श्रवण बेल्गोल नगर में के शिलालेख २७५ कोपण में नित्यदान के लिये 'वृत्तियों का प्रबन्ध किया, गङ्ग नरेशों द्वारा स्थापित प्राचीन 'केल्लभैरे' में एक विशाल जिन मन्दिर व अन्य पाँच जिन मन्दिर निर्माण कराये व बेल्गुल में परकोटा, रङ्गशाला व दो श्राश्रमों सहित चतुर्विशति तीर्थ कर मन्दिर निर्माण कराया। सवणेरु ग्राम का दान नारसिंह देव के विजययात्रा से लौटने पर इस मन्दिर की रक्षा के हेतु दिया गया था। १३७ ( ३४६) उसी पाषाण की दायीं बाजू पर ( लगभग शक सं० १०८७ ) श्रीमत्सुपाव देवं भू-महित मन्त्रि हुल्ल राजङ्ग तद्भामिनि-पद्मावतिगं क्षेमायुर्विभव-वृद्धियं माल्कभबं ॥ १ ॥ कमनीयानन-हेम-तामरसदि नेत्रासिताम्भोजदिन्दमलाङ्ग-द्युति-कान्तियिं कुच-रथाङ्ग द्वन्द्वदि श्रो-निवासमेनलु पद्मल-देवि राजिसुतमिर्पल हुल्ल-राजान्तरङ्ग-मरालं रमियिप्प पद्मिनियवोलु नित्यप्रसादास्पदं ॥२॥ चल-भाव नयनक्के कार्यमुदरक्कत्यन्तरागं पदौष्ठ-लसत्पाणि-तलक्के कर्कशते वक्षोजक्के कार्य कचकलसत्व गतिगल्लदिल्ल हृदयकेन्दन्दु पद्मावतीललना-रत्नद रूप-शील-गुणमं पोल्वनराकान्तेयर ॥ ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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