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२७४ श्रवण बेल्गोल नगर में के शिलालेख देसेयोल जन्नवुरक सवणेरिङ्ग सागरमादे जन्नवर सवणेर केरेयेरिय नडुवण हिरिय हुणिसे सीमे बडगणदेसेयोल कक्किन कोहु अदर मूडम बीरजन केरे आ-केरेवालगे सवणेर बेडुगन हल्लिय नडुवे बसुरिय दोणे अल्लि मूडलालज्जन कुम्मरि अल्लिमूड चिल्लदरे सीमे ॥
ई-स्थलदिन्दाद द्रव्यमनिल्लियाचार्यरी-स्थानद बसदिगल खण्ड-स्फुटित-जीर्णोद्धारक देवता-पूजेगं रङ्गभोगकं बस दिगे बेस केय्व प्रजेगं ऋषि-समुदायदाहार-दानक सलिसुवुदु ।।
इदनावं निज-कालदोल सु-विधियिं पालिप्प लोकोत्तम विदित निर्मल-पुण्य-कीर्त्तियुगमता ताल्दुगु मत्तमिन्तिदनावं किडिपोन्दु कट्ट-बर्गय तन्दातनाल्दु गभीर दुरन्तो ......
....... ॥ ३७॥ इस लेख में होयसल वंशी नारसिंह नरेश के मन्त्री हुल्लराज द्वारा गुणचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य नयकीति सिद्धान्तदेव को सवणेरु ग्राम दान करने का उल्लेख है। प्रारम्भ में हारपल वंश का वही वर्णन है जो लेख नं० १२४ में पाया जाता है । हुल्ल वाजिवशी यक्षराज और लेोकाम्बिके के पुत्र थे। वे बड़े ही जिनभक्त थे। 'यदि पूछा जाय कि जैन धर्म के सच्चे पोषक कौन हुए तो इसका उत्तर यही है कि प्रारम्भ में राचमल्ल नरेश के मन्त्री राय ( चामुण्डराय ) हुए, उनके पश्चात् विष्णु नरेश के मन्त्री गङ्गण (गङ्गराज ) हुए और अब नरसिंहदेव के मन्त्री हुल्ल हैं।' हुल्ल मन्त्री के गुरु कुक्कुटासन मलधारिदेव थे। मन्त्री जी को जैनमन्दिरों का निर्माण व जीर्णोद्धार कराने, जैनापुराण सुनने तथा जैन साधुओं को आहारादि दान देने की बड़ी रुचि थी। उन्होंने बंकापुर के भारी और प्राचीन दो मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया,
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