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श्रवण बेलगोल नगर में के शिलालेख २६५ व माडिसिदरु उभयसमयवू कूडि बुसुवि-सेट्टियरिनो सङ्घ-नायक पट्टव कट्टिदरु }}
वीर बुक्कराय के राज्य-काल में जैनियों और वैष्णवों में झगड़ा हो गया। तब जैनियों में से प्रानेयगोण्डि श्रादि नाडुओं ने बुक्कराय से प्रार्थना की। राजा ने जैनियों और वैष्णवों के हाथ से हाथ मिला दिये और कहा कि जैन और वैष्णव दर्शनों में कोई भेद नहीं है। जैन दर्शन को पूर्ववत् ही पञ्च महा वाद्य और कलश का अधिकार है। यदि जैन दर्शन को हानि या वृद्धि हुई ते। वैष्णवों को इसे अपनी ही हानि या वृद्धि समझना चाहिये । श्रीवैष्णवों को इस विषय के शासन समस्त राज्य की बस्तियों में लगा देना चाहिये। जैन और वैष्णव एक हैं, वे कभी दो न समझे जायें।
श्रवण वेल्गोल में वैष्णव अङ्ग-रक्षकों की नियुक्ति के लिये राज्य भर में जैनियों से प्रत्येक घर के द्वार पीछे प्रतिवर्ष जो एक 'हण' लिया जाता है उसमें से तिरुमल के तातय्य, देव की रक्षा के लिये, बीस रक्षक नियुक्त करेंगे और शेष द्रव्य जैन मन्दिरों के जीर्णोद्धार व पुताई श्रादि में खर्च किया जायगा। यह नियम प्रति वर्ष जब तक सूर्य चन्द्र हैं तब तक रहेगा। जो कोई इसका उल्लंघन करे वह राज्य का, संघ का और समुदाय का द्रोही ठहरेगा। यदि कोई तपस्वी व ग्रामाधिकारी इस धर्म में प्रतिघात करेगा तो वह गंगातट पर एक कपिल गौ और ब्राह्मण की हत्या का भागी होगा !
(पीछे से जोड़ा हुआ)
कल्लह के हवि सेटि के पुत्र बुसुवि सेट्टि ने बुक्कराय को प्रार्थनापत्र देकर तिरुमले के तातय्य को बुलवाया और उक्त शासन का जीर्णोद्धार कराया। दोनों सङ्घों ने मिलकर बुसुवि सेटि को संघनायक का पद प्रदान किया।
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