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________________ २६४ श्रवण बेलगोल नगर में के शिलालेख यलु पञ्चमहावाद्यङ्गलू कलशवु सलुबुदु जैनदर्शनक्के भक्तर देसे यिन्द हानि-वृद्धियादरू वैष्णव-हानि-वृद्धियागि पालिसुवरु यी- मर्यादेयलु यल्ला-राज्य-दोलगुल्लन्तह बस्तिगलिगे श्री-वैष्णवरु शासनव नट्ट पालिसुवरु चन्द्रार्क-स्थायियागि वैष्णव-समया जैन-दर्शनव रक्षि सिकोण्डु बहेउ वैष्णवरू जैनरू वोन्दुभेदवागि काणलागदु श्री तिरुमलेय तात य्यङ्गलु समस्त-राज्यद भव्य-जनङ्गल अनुमतदिन्द बेलुगुलद तिर्थदलिल वैष्णव-अङ्गरक्षेगासुक समस्त-राज्यदोलगुल्लन्तह जैनर बागिलुगट्टलेयागि मने-मनेग वर्षक्के १ हण कोट्ट प्रा-यत्तिद हान्निङ्ग देवर अङ्ग-रक्षेगेयिप्पत्तालनूमन्तविट्ट, मिक्क होनिङ्ग जीन जिनालयङ्गलिगे सार्थयनिकूदु यी-मरियादेयलु चन्द्रार्करुल्लन्नं तप्पलीयदे वर्ष-वर्षक्के कोट्ट कीत्ति यनू पुण्यवनू उपार्जिसिकोम्बुदु यी-माडिद कट्टतंयनु आवनोब्बनु मीरिदवनु राज-द्रोहिसङ्घ-सम्दायक्केद्रोहि तपस्वियागलि ग्रामिणियागलि यी-धर्मव केड सिदरादडे गङ्गेय तडियल्लि कपिलेयन ब्राह्मणननू कोन्द पापदल्लि हाहरु ।। श्लोक ।। स्वदत्तं परदत्तं वा या हरति वसुन्धरां । षष्टि-वर्ष-सहस्राणि विष्टायां जायते कृमि ॥२॥ ( पोछं से जोड़ा हुआ) कल्लेहद हर्वि-सेट्टिय सुपुत्र बुसुवि-सेट्टि बुक्क-रायरिगे बिन्नहंमाडि तिरुमलेय-तातय्यङ्गल बिजय-गैसि तरन्दु जीर्णोद्धार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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