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________________ श्रवणबेलगोल नगर में के शिलालेख २६१ [ श्रभिनव चारुकीत्ति पण्डिताचार्य के शिष्य, बेल्गोल के म'गायि के निर्माण कराये हुए 'त्रिभुवन चूड़ामणि' चैत्यालय का मंगल हो । ] १३३ (३४०) उसी वस्ति के प्रवेश मार्ग के दायीं ओर + ( लगभग शक सं० १४२२ ) श्रीमतु पण्डित देवरुगल गुड्डगलाद बेलुगुलद नाउ-चित्रगोण्डन मग नाग- गोण्ड मुत्तगद हान्नेनहल्लिय कल-गोण्डनीलगाद गौडगलु मङ्गायि माडिसिद बस्तिग कोट्ट दौडनकट्टे गहे बेहलु यीधर्म के अलुपिदवरु वारणासियल सहस्र - कपिलेय कोन्द पापक्की होगुवरु मङ्गलमहा श्री श्री श्री ।। [ पण्डितदेव के शिष्यों - नाग गौण्ड श्रादि गौडों ने मंगायि वस्त के लिये दोडून कट्टे की कुछ भूमि दान की 1 १३४ ( ३४२ ) सङ्गायि बस्ति की दक्षिण- भित्ति पर ( सम्भवतः शक्र सं० १३३४ ) श्रीमत्परम- गम्भीर - स्याद्वादामोघ लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्य-नाथस्य शासनं जिन शासनं ॥ १ ॥ तारास्फाराल कौघे सुर-कृत- सुमनेावृष्टि - पुष्पाशयालिस्तोमाः क्रामन्ति दृह जधर पटलीडम्भता यस्य मूर्ध्नि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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