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२६० अवण बेलगाल नगर में के शिलालेख को यह लिखा-पढ़ी कर दी कि जब तक मदिर की देव-दान भूमि में धान्य पैदा होता है तब तक वे सदैव विधि अनुसार मदिर की पूजा करेंगे।
दूसरे भाग में उल्लेख है कि नगर जिनालय के श्रादि देव के नित्याभिषेक के लिये हुलिगेरे के सोवण्ण ने पांच गद्याण का दान दिया जिसके व्याज से प्रति दिन एक 'बल्ल' दुग्ध लिया जावे ।
तीसरे भाग में उक्त तिथि को बेल्गोल के समस्त जौहरियों के एकत्रित होकर नगर जिनालय के जीर्णोद्धार तथा बर्तनों श्रादि के लिये रकम जोड़ने का उल्लेख है। उन्होंने सौ गद्याण की आमदनी पर एक गद्याण देने की प्रतिज्ञा की । जो कोई इसमें कपट करे वह निपुत्री तथा देवः धर्म और राज का द्रोही होवे ।।
[नोट-लेख के प्रथम भाग में शक सं० १२०३ प्रमाथिसंवत्सर का उल्लेख है । पर गणनानुसार शक सं० १२०३ वृष तथा शक सं. १२०१ प्रमाथी सिद्ध होते हैं। लेख के तृतीय भाग में सर्वधारि सवत्सर का उल्लेख होने से वह शक सं० १२१० का सिद्ध होता है।
१३२ ( ३४१) मंगायि वस्ति के प्रवेश मार्ग के बायीं ओर
( लगभग शक सं० १२४७ ) स्वस्ति श्री-मूलसङ्घ देशिय-गण पुस्तक-गच्छ काण्डकुन्दान्वयद श्रीमदभिनव-चारुकीर्ति-पण्डिताचार्य्यर शिष्यलु सम्यक्त्वाद्यनेक-गुण-गणाभरण-भूषिते राय-पात्र-चूडामणि बेलुगुलद मङ्गायि माडिसिद भुिवनचूडामणियेम्ब चैत्यालयक मङ्गलमहा श्री श्री श्री ।।
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