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________________ २५८ श्रवण बेल्गाल नगर में के शिलालेख [ इस लेख में नयकीर्ति के शिष्य नागदेव मत्री-द्वारा नगर जिना. लय तथा कमठपार्श्वदेव बस्ति के सन्मुख शिलाकुट्ठम और रङ्गशाला बनवाने व नगर जिनालय को कुछ भूमि का दान दिये जाने का उल्लेख है। प्रादि में लेख नं० १२४ के समान होयसल वंश का परिचय है । वीरबल्लाल देव के प्रताप का वर्णन कुछ अंश छोड़कर अक्षरशः वही है। इसके पश्चात् नयकीर्तिदेव और उनके शिष्यों दामनन्दि, भानुकीर्ति, बालचन्द्र, प्रभाचन्द्र, माघनन्दि, पद्मनन्दि और नेमिचन्द्र का उल्लेख है। नागदेव के वंश का परिचय इस प्रकार है -.. बम्मदेव-जोगब्बे (वीर बलालदेव के पट्टण सामी) नागदेव-चन्दब्वे ( चन्दले ) (मल्लिसेट्टि और माचवे की पुत्री) । (मल्लिदेव) ( कामल देवी) खंडलि और मूलभद्र के वशद व्यापारियों का भी उल्लेख है। ये ही व्यापारी जिनालय के रक्षक थे। १३१ ( ३३६ ) नगर जिनालय के भीतरी द्वार के उत्तर में (शक सं० १२०१ तथा १२१० ) स्वस्ति श्रीमतु-शक-वर्ष १२०३ नेय प्रमाथि-संवत्सरद मार्गशिर-सु (१०) बृदन्दु श्रोबेलुगुल-तीर्थद समस्त नखरङ्गलिग नखर-जिनालयद पूजाकारिगलु ओडम्बटु बरसिद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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