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________________ श्रवण बेलगाल नगर में कं शिलालेख २४६ १२८ (३३३) नगर जिनालय के बाहर ( ? शक सं० ११२८) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोघ-लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्य-नाथस्य शासनं जिन-शासनं ।। १ ॥ भय-लोभ-द्वय-दूरनं मदन-घोर-ध्वान्त-तीव्रांशुवं नय-निक्षेप-युत-प्रमाण-परिनि ताथ-सन्दोहनं । नयनानन्दन-शान्त कान्त-तनुव सिद्धान्तचक्रेशनं नयकीति बति-राजनं नेनेदोडं पापोत्करं पिङ्गगुं ॥ २ ॥ अवर तच्छिष्यरु ।। __ श्री-दामनन्दि त्रैविद्य-देवरु श्री-भानुकीर्ति-सिद्धान्तदेवरु बालचन्द्र-देवरु प्रभाचन्द्र-देवरु माघणन्दि-भट्टारकदेवरु मन्त्रवादि-पद्मणन्दि-देवरु नेमिचन्द्र-पण्डित-देवरु इन्तिवर शिष्यरु नयकीति -देवरु ॥ धरेयोल खण्डलि-मूलभद्र-विलसद्-वंशोद्भवरस्सत्य-शौचरतर सिंह-पराक्रमान्वितरनेकाम्भोधि-वेला-पुरान्तर-नाना व्यवहार-जाल-कुशलर विवख्यात-रत्न-त्रयाभरणर ब्बेल्गुल-तीर्थ-वासि-नगरङ्गल रूढ़िय ताल्दिदरु ।। ॥३॥ श्रीगोम्मटपुरद समस्त-नगरङ्गल्गे श्रीमतु-प्रताप-चक्रवर्ति वीरबल्लाल-देवर कुमार-सोमेश्वर-देवन प्रधानं हिरिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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