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________________ २४९ श्रवण बेलगोल नगर में के शिलालेख प्राचल देवी नयकीति के शिष्य बालचन्द्र की शिष्या थी। नयकीति सिद्धान्तदेव मूलसंघ, देशियगण, पुस्तक गच्छ, कुन्दकुन्दान्वय के गुणचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य (सुत ) थे। नयकीति के शिष्यों में भानुकीति, प्रभाचन्द्र, माघनन्दि, पद्मनन्दि और नेमिचन्द्र थे। ] १२५ (३२८) अकून बस्ति के प्रधान प्रवेश-द्वार के सामने की दक्षिणी दीवाल पर (शक सं० १३६८) क्षयाह्वय-कु-वत्सरे द्वितय-युक्त-वैशाखके मही-तनय-वारके युत-बलक्ष-पक्षतरे । प्रताप-निधि-देवराट प्रलयमाप हन्तासमा चतुर्दश-दिने कथं पितृपतेनिवार्य गतिः ।। १२६ (३२६) उसी दीबाल के पूर्व काण पर (शक सं० १३२६) तारण-संवत्सरद भाद्र-पद-बहुल - दशमियू सोमवारदलु हरिहररायनु स्वस्थनादनु । १२७ (३३०) उपयुक्त लेख के नीचे (शक सं० १३६८) क्षयाख्य-शक-वत्सरे-द्वितय-युक्त-वैशाख के महीतन [य]- वारके यु.......... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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