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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख २३१ [ उक्त तिथि को हिरिसालि के गिरिगौड के लघु भ्राता रङ्गैय्य ने ब्रह्मदेव मण्डप को दान दिया ! ]
[नोट-लेख में सिद्धार्थ संवत्सर का उल्लेख है। शक सं० १६०१ सिद्धार्थ था।
१२२ (३२६) पहाड़ी के दक्षिण मूल में चट्टान पर
(लगभग शक सं० ११२२) स्वस्ति प्रसिद्ध-सैद्धान्तिक-चक्रवर्तिगल त्रिविष्टपाबेष्टितकीर्तिगल काण्डकुन्दान्वयगगन-मार्तण्डरुमप्प श्रीमन् नयशीतिसिद्धान्त-चक्रवत्ति गल गुड्डु बम्मदेव-हेग्गडेय मग नागदेव-हेग्गडे नागसमुद्रमेन्दु केरेयं कट्टिसि तोटवनि किसिदडवर शिष्यरु भानुकीर्ति-सिद्धान्त-देवरु प्रभाचन्द्र देवरु भट्टारक-देवरु नेमिचन्द्र-पण्डित-देवरु बालचन्द्र देवर सन्निधियलु नागदेव हेग्गडेगे आ-तोट गद्दे अवरेहाल सर्बबाधा परिहारवागि वर्शक्के गद्याण ४ तेरुवन्तागि मक्कल मक्कलु पर्यन्त कोट्ट शासनार्थवागि श्री-गोम्मट-देवर अष्ट-विधार्चनेगे बिट दत्ति ॥
बम्मदेव हेग्गडे के पुत्र व नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवति के शिष्य नागदेव हेग्गडे ने नागसमुद्र नामक सरोवर और एक उद्यान निर्माण कराये । इन्हें अवरेहालु सहित नयकीति के शिष्य भानुकीति, प्रभाचन्द्र, भट्टारकदेव और नेमिचन्द्र पण्डितदेव ने नागदेव हेगडे को ही इस शत पर दे दिया कि वह सदैव प्रतिवर्ष गोम्मटदेव के अष्टविध पूजन के निमित्त चार गद्याण दिया करे।]
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