________________
विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
२२६
- प्रामदल श्रीमत्पण्डित देवर शिष्यरु काश्यप गोत्रद द्विजकुल सम्पन्नरु सेनबोव सायन्ननवरु अवर मदवलिगे महदेविगल्ल प्रिय पुत्र हिरियण्ननू श्री गुम्मटनाथ - स्वामिगल दिव्य-श्रीपदवनू दरुशनवागि परमजिनेश्वर भक्तरु वर- गुणिगलु मुक्ति-पथवं पडदरू || श्री
[ कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण और पण्डित देव के शिष्य सेनबाव सायण्ण के पुत्र जिनभक्त हिरियण्ण ने उक्त तिथि को अनादि ग्राम कोङ्गनाडु की गणना की (?) और उसकी पत्नी महादेवी ने गोम्मटनाथ स्वामी के चरणारविंद की वन्दना कर मुक्ति-मार्ग प्राप्त किया । ]
[ नोट - लेख में सौम्य संवत्सर का उल्लेख है । १५३१ सौम्य था |
११८ (३१३)
चौबीस तीर्थंकर बस्ति में
( शक सं० १५७० )
(नागरी लिपि)
वों नम सिद्धेभ्यः गोमट - स्वामी: आदीश्वरः मुल्लनाईक : चोबीस तीर्थंकरं कि परतीमा: चारुकीरती पण्डितः धरमचन्द्रः बल्लातकार उपदसा: सके १५७० सर्वधारी - नाम- स वत्सरः वैशाख वदी २ सुकुरबार देहराङ्की पती स्य है... गेरवाल्लः यवरेगोत्र: जीनासा: धीवा सा का पुत्रः सदावनसाः व झाबूसाः व लामासाका पुत्रः ताकासा मनासा: कमुलपूरे सातसा भाससा...... वद.. इ... भोपतरसे राव......
...
Jain Education International
शक सं०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org