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________________ २२८ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख स्थान के द्वार की शोभा के लिये निर्माण कराई। उन्होंने रङ्गशाला की हप्पलिगे ( कटघर ? ) व महासोपान व गोम्मटदेव की रङ्गशाला की हप्पलिगे भी निर्माण कराये, तथा गङ्गवाडिभट में अस्सी नवीन बस्तियाँ बनवाई और दो सौ बस्तियों का जीर्णोद्वार कराया । भरत चमूपति की सुता शान्तल देवी 'ने यह लेख लिखवाया । ] ११६ ( ३१२ ) बागल बस्ति के पश्चिम की ओर चट्टान पर ( शक सं० १६०२ ) श्रीमतु शालिवाहन शकवरुष १६०२ सिद्धार्थ- संवत्सरद माघ- बहुल १० यल्लु मुनिगुन्दद सीमेय देश-कुलकरणियर मकलुवाङ्क होन्नप्पय्यन अनुज वेङ्कप्पैय्यन पुत्र सिद्दप्पैन अनुज नागप्पैय्यन पुण्यस्त्रीयराद बनदाम्बिकेयरु बन्दु दरुशनवादरु भद्रं भूयात् श्री ।। श्रुतसागर व निगल समेत विदे तिथियति माडिगूर गिडगप्प नागप्पन पुत्र दानप्पसेट्टर पुण्य-स्त्री. नागवन मैदुन भिष्टष्पनु दरुशनवादरु || [ उक्त तिथि को श्रुतसागर गणी के साथ उक्त व्यक्तियों ने तीर्थ वंदना की । ११७ (२५८ ) कञ्च गुबि बागिलु के दक्षिण की ओर चट्टान पर ( सम्भवत: शक सं० १५३१ ) श्री सौम्यस वत्सरदालु विभवद आश्वयज ब ७ मियोलु तां श्री सोमनाथपुर वेनिसिद कोङ्गनाडिङ्गदं अनादिय ग्रामं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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