SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख मुनीन्द्ररुं अवर शिष्यरु गौरश्रीकन्तियरु सामश्रीकन्तियरु ... नश्रीकन्तियरु देवश्रीकन्तियरुं कनक- श्रीकन्तियर शिष्य... यिप्पत्त-एण्टुतण्ड - शिष्यरु वेरसु हेबणन्दि संवत्स रद फाल्गुणसुत्र श्री गोम्मटदेवर तीर्थनन्द... पञ्च कल्याण -- [ इस लेख में कुन्दकुन्दान्वय, देशी गण, पुस्तकगच्छ के महाप्रभावी श्राचार्यों - त्रिभुवनराजगुरु भानुचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्त्ति, सोमचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्त्ति, चतुर्मुख भट्टारकदेव सिंहनन्दि भट्टाचार्य, शान्ति भट्टारकाचार्य, शान्तिकीर्त्ति भट्टारकदेव, कनकचन्द्र मलधारिदेव, और नेमिचन्द्र मलधारिदेव -- के उल्लेख के पश्चात् कहा गया है कि इन सब श्राचाय्य व अनेक गणों और संघों के श्राचार्य, कलियुग के गणधर पचास मुनीन्द्र, व उनकी शिष्यायों गौरश्री, सामश्री, देवश्री, कनकश्री व शिष्यों के अट्ठाइस संघों ने उक्त तिथि को एकत्रित होकर पञ्चकल्याणोत्सव मनाया । ] नोट - लेख में संवत्सर का नाम हैबणन्दि दिया हुआ है जिससे सम्भवत: हेमलम्ब का तात्पर्य है । शक सं० १०६६ हेमलम्ब था । ] ११४ (२६८ ) एक शिला पर जो उस चट्टान के सामने खड़ी है ( सम्भवतः शक सं० १२३८ ) ........ स्वस्ति श्रीमूल सङ्घदेशीगण पुस्तकगच्छ- काण्डकुन्दान्वय श्री विद्य-देवर शिष्यरु पद्मणन्दिदेवरु नल- स ंवत्सरद चैत्र-सु-१ सोमवार दन्दु नाक- श्रीमनस्सरोजिनीराजमरालरादरु मङ्गलमहाश्री ॥ [ उक्त तिथि को त्रैविद्यदेव के शिष्य पद्मनन्दिदेव ने समाधिमरण किया । ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy