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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख २२१ यत्र प्रयान्ति परलोकमनिन्द्यवृत्ता स्स्थानस्य तस्य परिपूजनमेव तेषां । इज्या भवेदिति कृताकृतपुण्यराशेः स्थेयादियौं श्रुतमुनेस्सुचिर निषद्या ।। ७५ ।। इशु-शर-शिखि-विधु मित-शक परिधावि-शरद्वितीयगाषाढ़े सित-नवमि-विधु-दिनोदयजुषि __ सविशाखे प्रतिष्ठितेयमिह ।। ७६ ॥ विलीन-सकल-क्रिय विगत-रोधमत्यूजित विलचित-तमस्तुला-विरहित विमुक्ताशय । अवाङ -मनस-गोचर विजित-लोक-शक्त्यग्रिम मदोय-हृदयेऽनिश वसतु धाम दिव्य महत् ।। ७७ ।। प्रबन्ध-ध्वनि-सम्बन्धात्सद्रागात्पादन-क्षमा । मङ्गराज-कबेवाणी वाणी-वीणायतेतरां ।। ७८ ॥ [ नोट-मंगराज कवि-कृत यह श्रुतमुनि की प्रशस्ति ऐतिहासिक उपयोगिता के अतिरिक्त अपने काव्य-सौन्दर्य में भी अनुपम है। १०६ (२८१) त्यागदब्रह्मदेवस्तम्भ पर (लगभग शक सं० ६५०) (उत्तर मुख) ब्रह्म-क्षत्र-कुलोदयाचल-शिरोभूषामणिर्भानुमान ब्रह्म-क्षत्रकुलाब्धि-वर्द्धन-यशो-रोचिस्सुधा-दीधितिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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