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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख २०६ नोट-आचल देवी के अन्य अनेक दानों का उल्लेख शक सं० ११०३ के लेख नं० १२४ (३२७) में है। अतएव प्रस्तुत लेख का समय भी शक सं० ११०३ के लगभग होना चाहिये। पर आश्चर्य यह है कि यह लेख इससे बहुत पीछे के दो लेखों ( नं. १० और १०६ ) के नीचे खुदा हुआ है। लिपि भी इसकी उतनी पुरानी प्रतीत नहीं होती। सम्भव है कि किसी प्राधार पर लेख पीछे से ही लिखा गया हो।
१०८ (२५८) सिद्धरबस्ती में दक्षिण ओर एक स्तम्भ पर
(शक सं० १३५५ ) (प्रथममुख)
श्री जयत्यजय्यमाहात्म्य विशासितकुशासनं । शासनं जैनमुद्भासि मुक्तिलक्ष्म्यैकशासनं ॥१॥ अपरिमितसुखमनल्पावगममय प्रबलबल हृतातङ्क ! निखिलावलोकविभवं प्रसरतु हृदये पर ज्योतिः ॥ २॥ उद्दीप्ताखिलरत्नमुद्ध तजडं नानानयान्तह सस्यात्कारसुधाभिलिप्ति जनिभृत्कारुण्यकूपच्छित । प्रारोप्य श्रुतयानपात्रममृतद्वोपं नयन्तः परानेते तीर्थकृतो मदीयहृदये मध्येभवाब्ध्यासतां ।।३।। तत्राभवत् त्रिभुवनप्रभुरिद्धवृद्धि:
श्रीवर्द्धमानमुनिरन्तिम-तीर्थनाथः । यद्देहदीप्तिरपि सन्निहिताखिलानां
पूर्वोत्तराश्रितभवान् विशदीचकार ॥४॥
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