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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
मग बोम्मन्ननोलगाद गौडुगल समक्षदलि देवरिगे पादपूजेय माडि क्रयवागि कोण्डुकोट्ट असाधारण वहन्त कीर्त्तियन् पुण्यवनू उपार्जिसि कोण्डनु मङ्गलमहा श्री श्री श्री ॥
[ कर्नाट देश की गङ्गवती नामक नगरी में माणिक्यदेव और उनकी भार्या बाचायि रहते थे। इनके मायण्ण नामक पुत्र हुआ जो चन्द्रकीर्त्ति का शिष्य था । मायण्य ने उक्त तिथि को बेल्गुल के गङ्गसमुद्र नामक सरोवर की दो खण्डुग भूमि खरीद कर उसे गोम्मट स्वामी के अष्टविध पूजन के लिये बेल्गुल के कई पुरुषों के समक्ष दात की। ] १०७ (२५६)
उपयुक्त लेख के नीचे ( लगभग शक सं० ११०३ )
शीलदि चन्द्रमौलिविभुवाचलदेवि निजोद्वकान्तेयालोलमृगाक्षि बेल्गुलद गुम्मटनाथन पाददचर्चा लगे बेडे बेक्कन शीमेयनित्तनुदारवीरबल्लाल - नृपाल कनुर्व्वियुमब्धियुमुल्लिनमेय्दे सल्विनं ॥ १ ॥ अन्तु धापूर्वक माडिकोटन्त ग्रामसीमे । मूड होनेनहल्लि तेङ्क बस्तिहल्लि देवरहल्लि पडुव चौलेनहल्लि हाडोनहल्लि ( पूर्व मुख के नीचे )
बडग मञ्चेनहल्लिय बिट्ट कोट ग्रामौ आचन्द्रार्कस्थायियागि सलुगे मङ्गलमहा श्री श्री श्री ॥
[ चन्द्रमौलि की पली आचल देवी की प्रार्थना पर वीरबलाल नृप ने 'बेक्क' नामक ग्राम का दान गोम्मटनाथ के पूजन के हेतु किया । लेख में ग्राम की सीमा दी हुई है ।
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